शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

असफल माँ

गाड़ी छुटने में सिर्फ़ दो मिनट थे ... में अनजान डर और खुशी के भाव से ट्रेन में चढ़ गई थी ,पूरे पॉँच साल बाद शिखा को देख पाऊँगी । पियाली का जन्मोत्सव और शिखा के कविता संग्रह का विमोचन है । थोड़ा डर था शिखा के व्यवहार से और पियाली के जनम की खुशी । आखिर शिखा को अपनी अकेली माँ पर तरस आ ही गया । कब आँखों के कोरे गिले हो गए पता ही नहीं चला ।टी टी ने जब टिकेट माँगा तो होश आया । टिकेट दिखा के में अपनी सीट पर लेट गई । शिखा की किताब देख कर सोच रही थी.... क्या सच शिखा मुझे इसका हक़दार मानती है ?क्या मुझे माफ़ कर दिया उसने ?" मेरे माता पिता को समर्पित जिन्होंने मुझे इस लायक बनया अपना समय ,प्यार सम्मान दिया " सच मेरी बेटी कितनी समझदार और संपुर्ण है अपने आप में । बिल्कुल अपने पिता पर गई है वोई आत्मविश्वास ,सहनशक्ति ,विश्वास, गुस्सा एकदम शिखर जैसा । ट्रेन की रफ्तार के साथ मेरे विचार भी दौड़ रह थे । सब कल ही बात लगती है ॥जैसे समय बिता ही नहीं । कसे पूछूंगी क्या तुम्हें मुझे माफ़ कर दिया बेटी ...? मृदुला जानती है शिखा उसके घर नहीं आना चाहती है ।संजय ने कभी मुझे सास के सम्मान से वंचित नहीं किया । शायद शिखा ने कभी बताया हीनहीं होगा हमारे बीच आम माँ बेटी जसे रिश्ता नहीं है ॥ आज वो ख़ुद एक माँ है शायद मेरे प्यार को समझ पाए मेरी मज़बूरी को भी ॥ मेरी निश्चल ममता पर कब उसे भेदभाव और अकेलापन और मुझेसे दूर ले गया । में स्तब्ध थी उसके मुह से इसे शब्द सुन कर । मेरी अनभिज्ञता को गुनाह बता दिया । वो खेलती कूदती बड़ी हो गई ,कॉलेज जाने लगी ॥लेकिन मुझ से दूर होत्ती गई ..मेरी नौकरी के कारन में उसे पूरा टाइम नहीं दे पाती थी ,जो वो चाहे थी । में आश्वस्त थी की मेरे संस्कार असे नहीं है के वो भटके या मुझसे कुछ छिपाए ..फिर चाह्यी मस्ती मज़े की बात हो या kisie ladke ने chheda हो या tichar ने कुछ kahn हो कभी jhoott नहीं बोल उसने कभी निराश भी नहीं किया । पर वो शायद मुझसे दूर हो रही थी अपनी खुशियाँ छिपा रही थी ,मुझे पता ही नहीं चला में उससे दूर होगयो अपने ऑफिस के कारन काम और काम बस ........कभी उसके chehARE की खुशी ही नहीं देख पाए या उसके दुःख कुछ नहीं । वो जब कविता पाठ में प्रथम आए ..खाने की टेबल पर रखी ट्रोफी देखि और मैंने बड़े रूखे अंदाज़ में पूछ यहे क्या है ?उसके कविता पाठ बोलते ही बोली में बहुत रूखे से जवाब दिया था..... पदाई में मन लगाओ यहे सब बेकार है ... आज पूरा द्रश्य मेरे सामने है पर ...उस समय जाने समझने की शक्ति कहाँ गई ........फूल से दिल को दुख दिया ......मैंने उससे लेखन के लिए प्रोत्शाहित नहीं किया ।
याद आ रहा है ..जब मैंने ऑफिस से आए थी ,तो उचालती कूदती आए .अपनी पहेली कविता दिखने ....और मैंने डांट दिया ..उसके बाद वो अपने में रहती थी पर मेरा ध्यान नहीं गया । आज सोचती हु सब .........सच है ६० के बाद ही इन्सान अपने काम का लेखा जोखा करता है ।
में कितना सोचती थी ,शिखा को ऐसे पालूंगी स्वरुप को ऐसे ।शिखर के असमय गमन से में टूट गई परिवार हमारे पूरी जिमीदारी मेरे ऊपर आगई । मैंने बैंक ज्वाइन कर ली मेनेजर के पद पर अच्छा काम करना शिखर की तरह । में सोचती थी ,बच्चे समझते है माँ को, पर में अपने बच्चो को नहीं समझ पाए । मेरे पास उनके लिए समय के अलवा सब था । उसकी कविता में दर्द था पर मैंने कभी पहेल महसूस नहीं किया ।हालाँकि स्वरुप बड़ा था इंजीनियरिंग करके चला गया अमेरिका । फिर शादी कर दी उसकी पसंद की लड़की से । पर शिखा मेरे पास थी मेरी लाडो थी अपने भाई के हॉस्टल जाने के बाद कम हस्ती बोलती थी में जानती थी उससे मिस करती है । मैंने टाटा कंपनी में होंने के बाद उससे बंगलोर नहीं जाने दिया अकेले कसे रहती यही सब सोच कर ?एक और उसके जीवन की खुशी को दूर कर दिया मैंने । ........उसके बाद बस शाम को मेरी चाय देना डाक और टेबल पर खाना लगाकर साथ में खाना की बात नहीं अगर कुछ पूछु तो हाँ या न में जवाब देना । में भी इतनी थकी रहती थी की कुछ सोच ही नहीं पाती । स्वरुप अमेरिका में सेटल हो गया अपनी ग्रास्थी और नौकरी में मस्त ।
शिखा २५ पर कर रही थी में बैंक में इतना रम गई प्रमोशन से में खुश थी और उससे उचाई पर ले जाना चाहती थी । स्वरुप ने फ़ोन पर एकएन.र.ई लड़का बताया ,तब एहसास हुआ की कितनी बड़ी हो गई लाडो । इस बार उसका जन्मदिन भूल गई ...जसे ही याद आया पेस्ट्री और गिफ्ट ले कर उसके कमरे में पहुची ..उसने थैंक्स कह कर रख लिया कोई उत्साह नहीं । मुझे लगा वो रोई थी पर मैंने पुछा पर वो कुछ बोली नहीं ?में आ गई सोचा कल छुटी है आराम से पूचुंगी और लड़के के बार में भी ॥
सुबह ही मैंने नाश्ते पर पूछ एन.र.ई लड़के के लिए पूछ तो वो बोली ..माँ आप तो मुझे एक इंच भी दूर नहीं रखना चाहती थी फिर एसा क्यों ?क्या अब वो ...........?
वो चली गई ॥
में अन्दर तक हिल गई । बात वोई की वोई रह गई ।
एक दिन अचानक इस संबोधन से मैंने खा हा बेटा बोल ...................मुझे एक लड़का इन्टरनेट मर्तिमोनिअल पर पसंद किया है ...लड़का बंगलोर में है ८०,००० तनखा है कुंडली मैच हो गई है ............अगर आप हाँ कहना चाहो तो देख लो भइया को मैंने डिटेल बता दिया है ........बस यहे आखरी बार आप सीरियसली इस मैटर को देख लो फिर कुछ नहीं चाहिए .और हाँ कोई दहेज नहीं चाहिए उनको ।
वो बायोडाटा फोटो रख कर चली गई ...में कुछ सोच ही नहीं पाए ...............वाकई में क्या में स्वार्थी हो गई अपनी बेटी का भविष्य के बारे में कभी उससे पुछा नहीं,जाना नहीं क्या चाहती है वो ? आज में एक गिल्टी में थी की मैंने अपनी बेटी को खो दिया ......में अपनी धुन से जगी थी आज ......पर क्या फायदा .... सीरियसली मतलब ...अब तक मैंने सब मजाक में कहा है क्या............?
मैंने फोटो और बायोडाटा देखा ... वाकई में संजय जसा लड़का में दूंद नहीं पाएंगे । शिखा के लिए हर तरह से बढ़िया ।
में एक असफल माँ थी ...वो होसियार ,होनहार थी पर मैंने उससे रोक लिया वरना यहे किताब तू कबकी छाप जाती ।पर में खुश हु संजय ने उससे समझा और आगे बढ़ने का मौका दिया।
पञ्च साल में वो कभी आए नहीं पर संजय मेरे बारे में पोचते थे कबर लेते थे कभी कभी वो भी बात करती थी । मेरे जन्मदिन पर तोफहा भेजती थी ।
ट्रेन की चल पहेल से में जगी लगा स्टेशन aane वाला है । और धड़कन तेज़ हो गई । संजय मुझे अन्दर लेने आ आगयेपीरे छुए ...शिखा को देखा तो लगा सब गिले शिकवे माफ़ है । गले मिलते ही लगा कोई चट्टान पिघल गई है ....दोनों की आँखों ने देख और एक दुसरे से माफ़ी मांग ली ........एक दम मौन प्यार के भाषा में .....पर फिर आंसू बह रह थे आँखों से ।

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