गुरुवार, 20 अगस्त 2009

नभ का तारा

मेरी दादी श्रीमति अनसुईया देवी के लिए ......मेरे दिल से लिखी गई एक कविता । वो मेरी सखी ही नहीं मेरी प्रेरणा थी मूरत थी वो कोई लालच नहीं कोई चाह नहीं ......हर काम को करने में तत्पर .......गजब का आकर्षण और शांति थी उनके जीवन में ....मेरी खुश  किस्मती  है मैं  उनके घर आए और उनका पूरा साथ मिला ..मेरा हर काम  में उनकी झलक हमेशा रहेगी ।

मेरी बचपन की छाव  का अंचल छुट गया,
मेरे सारा से मेरा हमकदम साया टूट गया,
बस रह गई उनकी यादें
कहाँ था जो ..दिया था जो उन्होंने
मुझे तराशा था उस देवी ने
मुझे दिखया था वो सपना
मिलाया था मेरे बचपन से हाथ
नई बुलंदियों को दिखाया था
सिखलाया था परम्परा की बारीकियों को
समझाया था मानवीय कर्तव्यों को
जीवन की कठिन रहा का
बहादुरी से सामना करना
न भूलना  माता पिता को वो सर्वोपरि  है
न गवाना  एक पल भी
जीवन की कीमत पैसा नहीं है
बस प्यार और सम्मान दो
खूब पढो और पढ़ाओ  परम्परो को आगे ले जाओ
'मैं ' न हो तुम्हारा संदेश "हम सब एक है "यह दो संदेश
देख रही हूँ आकाश सवार ,बस चमक रहा एक ही तारा
यही है दादी का मुख प्यारा जो दे रहा है जग को उजियारा
यही है दादी माँ का आशीर्वाद दुलारा ।

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