शुक्रवार, 18 मई 2012

एक चरित्र

कोई कुछ भी बोले हम कितनी ही सदियों आगे निकल जाये लेकिन बहुत ज़रूरी अहम् भूमिका और सरथी को चलने वाली  की  इज्ज़त मान मर्यादा हमेशा कभी उसके द्वारा कभी किसी और की कारन उछाली जाएगी .तकलीफ इस बात की यह किसी भी देश या जगह की नहीं सोच की बीमारी है इससे हटना और मिटना किसी एक की नहीं सब की सोच की परिभाषा है ...इंतज़ार है जब यह सोच नयी दिशा में होगी ..



एक बार फिर बलि चढ़ी -लड़की की
उसी देश में जहां
दुर्गा  माँ की पूजा की जाती
पर सीता माँ तो  बदनाम हुई
अग्नि परीक्षा की लालसा में फिर एक बार बलि चढ़ी
यही तेरा इंसाफ है--- इश्वर
नारी को सिर्फ  एक चरित्र दिया
और उसके नापने के पैमाने औरो के हाथ में सौप दिए
 क्यों नारी को महानता  का गुण दिया जब इतनी नीच सोच बनायी 
 या तो नारी दी होती या यह सोच
ऐसे लोगो की बलि तो कभी नहीं दी
हर परीक्षा सिर्फ नारी के लिए रची
तुम भी स्वार्थी हो गए --भगवन
कलयुग की भेट तुम्हारी सोच चढ़ी
उस माँ को पुकार सुनानी ही होगी
कुछ नीच लोगो  को सबक देना ही होगा
कलयुग के साथ इन्टरनेट भी है तो जवाब तो देना ही होगा  
 निर्दोष नारी को आग में चलना नहीं उसके आंसू  ही बहुत कुछ बाय करते है
 क्या चरित्र दोष में नारी के कदम ही डगमगाते है
उस आदमी काकोई  क्या कसूर नहीं ......
क्यो इतना महान बनाकर नीच के बीच भेज दिया
कुछ तो इंसाफ किया होता
टक्कर तो हमेशा  साथ वाले के साथ होती है
नर मादा का खेल नहीं एक सोच तो दी होत्ती 
हनन और दोष के चक्र के नहीं डाला होता