कदम के डगमगते भी ना चल पड़ी
कभी हम संभल गए कभी तुम
कुछ कुछ गलती
थोड़ी थोड़ी समझदारी से चल रही है गाडी
उलटे पुल्टे होते भी हम है एक बंधन में
मीठी मीठी तकरार में भी मज़ा है
कभी आशा निराशा में भी एक सहारा है
नाराज़गी के बाद भी मनाने की एक आस है
ज़रा छु दो बस अन्दर तक भीग जायेंगे
लड़ते लड़ते हँस जायेगे
बैठे बैठे रूठ जायेंगे
कुछ उम्मीद की नज़र से देख कर अलग बीतों पे लड़ जायेंगे
कही के गुस्से को कह उतर देंगे
सब समझते हुए भी नासमझ बन जायेंगे
कही जलन की जगह को अलग ढंग से बताएँगे
इसी लुका छिपी में एक उम्र बीत देंगे
दो अलग अलग परिवारों के पंछी एक घोसला बना देंगे
कभी सबसे अच्छा और बुरा दोनों को यही बता देंगे
जाने कौन सा है यह गठबंधन
वैसे हम इसे शादी के नाम से जानते है .................
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