बस ,चलते चलते कुछ ख्याल अपनी छाप छोड़ जाते है।
कभी कविता कभी कहानी बन जाते है ,
यह कला है ,मुझे आयी नहीं
पर विचारो ने मुझे लिखने पर मजबूर कर दिया।
इस गुस्ताखी के लिए माफ़ी
सोमवार, 12 अक्टूबर 2009
चिडियां
भोर हुए चिडियां चचहाई पहर हुए दाना चुग लाई शाम हुए घर लौट आई रत हुए आंख लग जाये बिना घडी इतनी नियमितता कहाँ से लाई .
8 टिप्पणियां:
सार्थक प्रश्न/कौतूहल
प्रकृति के निकट रहा जाए .. तो कृत्रिम वस्तुओं की कोई आवश्यकता नहीं पडती !!
sab harmones ka khel hai :)
sundar kavita..
प्रकृति अद्भुत है.
ये कौतुहल तो हमारा भी है ...!यहाँ अलार्म लगाने के बाद भी देर होती रहती है ..!!
बहुत बढिया!!प्रकृति अद्भुत है।
Bahut baht dhanywaad
waah !!
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