सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

चिडियां

भोर हुए चिडियां चचहाई
पहर हुए दाना चुग लाई
शाम हुए घर लौट आई
रत हुए आंख लग जाये
बिना घडी इतनी नियमितता कहाँ से लाई .

8 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

सार्थक प्रश्न/कौतूहल

संगीता पुरी ने कहा…

प्रकृति के निकट रहा जाए .. तो कृत्रिम वस्‍तुओं की कोई आवश्‍यकता नहीं पडती !!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

sab harmones ka khel hai :)
sundar kavita..

Udan Tashtari ने कहा…

प्रकृति अद्भुत है.

वाणी गीत ने कहा…

ये कौतुहल तो हमारा भी है ...!यहाँ अलार्म लगाने के बाद भी देर होती रहती है ..!!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया!!प्रकृति अद्भुत है।

Ritu ने कहा…

Bahut baht dhanywaad

अनिल कान्त ने कहा…

waah !!