सोमवार, 5 मार्च 2012

उम्मीद

बड़ी  देर  से बहुत सी आस पाल के बठे थे 
अब कुछ तूफान और आंधी  का असर नहीं होता
बेजार से बेठे  है 
बड़ी तमन्ना  थी उनसे मिलने की 
आज फिर उसी मंज़र पर बेठे है 
बड़ी बड़ी उम्मीद थी अपने आप से 
आज फिर तनहा है 
कुछ लम्हों को पिरोना चाहते थे 
आज फिर अनजान है अपने अक्स से 
एक बार फिर किस्मत  ने मुह मोड़ लिया
फिर नए सिरे खोजने जा रहे है 
पुरानी  उम्मीद कभी पूरी नहीं होती 
हम फिर नयी उम्मीद लगा बेठे है
उम्मीद के अधूरेपन से ही बेजार हो खो जायेंगे
इन उम्मीद के पूरे होने के चाकर में
फस कर भवर बन जायेंगे
ज़िन्दगी  दी है तो जीना तो पड़ेगा ही पर
एसा जीने में कहाँ को लुफ्त आएगा
यह नहीं जान पाते हमे उम्मीद  ज़यादा है या उम्मीद हमसे जायद है
इसी उधेबुन में नयी उम्मीद लगा बेठेते है .....