मंगलवार, 24 मई 2011

सोह्वर((हमारी संस्कृति ))

सोह्वर (हमारी संस्कृति )-- जो जच्चा बच्चा का  मन बहलाने के लिए गया जाते है ....बच्चा होने के बाद ... 


लाल हुए है कौशल
 ख़ुशी दशरथ के
 अवध  पूरा जाना है
 सासुजी अवा चरुवा 
उनके कागन में 
फूल से गोदी भरना 
अवधपुर जाना है !!
आओ जेठानी ....

पीर  हमने सही है 
सैयां के लाल कसे कहें 
आओ सास रानी करो हमारे न्याय 
लाल हमरे कहवा सैयां के लाल कहें 
..आओ देवर ..
...आओ ससुर 

कडवी लगी लाल को पपरी न पाहू 
सास मेरी डांटे ननद दुलारे 
सैयां खड़े करे इशारा 
द्वारे से आये देवर राजा
समझावे  भाभी दूध पीओ 
कटोरे तो पपरी कडवी न लगे !!

तेरे पीस हुए पीर 
दिल के आरपार है 
न जाने किसकी जीत है 
न जाने किसकी हार 
लाख मैंने सोचा की सासुजी न बुलाऊंगी 
मुझे क्या कबर थी की खुद चली आएँगी 
मेरे कंगन उनके हाथ देने को करार है !!

बाजे रे मोरे   अंगना  शहनाई 
सासुजी तुम ही आना 
चरुवा धरिया जाना 
चरुआ धरये अपने लाल को खिलाये जाना 
पांच रुपैया दूंगी हत्त्न के कंगन दूंगी 
दे दो अपने लाल को बधाई दे दो 
बाजे रे मोरे   अंगना  शहनाई  !!