शनिवार, 22 अगस्त 2009

सपना

सपने का कोई ओर नहीं कोई ठोर नहीं
सबके मन में बसते
अपनी राह ख़ुद चुनते
जबान पर आने से कतराते
जोश जस्बे के साथ किस्मत का साथ भी चाहते
कभी टूटने का दर्द पगला देता
कभी आंखे नम कर जाता
कभी पसीने से तरबतर कर जाता
सच्चे हो न हो पर अच्छे होते सपने
कभी मकसद दे जाते सपने
कभी कोरी कल्पना बन जाते सपने
सपनो के गलियारों में गोते लगना सब को सुहाता
काश ! सबके सपने सच हो जाते
कोई नहीं इन्हे तोड़ पता
बुनने से नहीं रोक पता
सच होते हमेशा सुबह के सपने ।

6 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

सपने तो सपने होते है.
सपने सच भी होते है अगर इनके लिये प्रयास किया जाये
उम्दा रचना

श्यामल सुमन ने कहा…

सपना सच हो या झूठ - लेकिन सपनों को मरने से बचाकर हमेश बुनना चाहिए।

टिप्पणीकर्ताओं की आसानी के लिए हो सके तो वर्ड वेरीफिकेशन हँटाने का उपाय करें।

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

कभी खुल कर बिखर नहीं पाते अपने
सभी की नींद में सँवर जाते हैं अपने
रितु जी की परिभाषाऍ हैं अनोखी सी
जिंदगी की बन्दगी करते जाते हैं सपने

ओम आर्य ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर रचना

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर भावपूर्ण रचना.

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

आभार! सुन्दर सुन्दर रचना पढवाने के लिऍ

गणेशचतुर्ती पर हार्दिक मगलकामनाऍ।यह पढने के लिये किल्क करे।
हिन्दी ब्लोग जगत के चहूमुखी विकास की कामना सिद्धिविनायक से

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