दादी के आमो के बीजो में हर क़र्ज़ चुका दिया या उधार उठा लिया
नारी देह की प्रथम किलकारी से महकती बगिया प्यारी
या कर्जो की शरुआत का सिलसिला मान लिया
पिता जोड़ तोड़ से घबराए ,माता बुजुर्गो से कतराए
दादा दादी मायूस नज़र आए
शायद लक्ष्मी रूप समझ न पाए
सिर्फ़ बेटे के चाह में तड़पते नज़र आए
ऐसे द्वार सात जनम तक लक्ष्मी न आए
कौन जाने इस लक्ष्मी रूप के लिए कल कतार लग जाए ।
1 टिप्पणी:
Bahut achchi abhivyakti hai. keep it up.
Pramod Tambat
Bhopal
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