मूक रिश्ता
फ़िज़ा का रंग अजीब था ...मेरे मन में नए नए ख्याल आ रहे थे
अजीब से हसीं बार बार होठो पे आ जाती मैं समझ रही थी
माँ न देख ले , इसलिए कमरे से निकल नहीं थी या उन्हें टाल रही थी
निहाल , मेरे दिल करीब है उससे देख कर मेरी दिल की धड़कन बढ़ जाती थी... वैसे सबकी बढ़ जाती थी
शायद उम्र का असर था दिखने में मामूली और बिलकुल साधरण रंग रूप पर इतनी बोलती आंखें पहली बार देखी थी। इतनी कशिश थी उन आंखों में , मैं खींची चली जाती थी ,बस इतना पता था उन आंखों ने मुझे वो जगह दी है जो पहले कभी नहीं मिली।
एक लगाव- एक ठहराव जिसे हम दोनों ने महसूस किया था। समाज की शर्म या उम्र का खुमार कुछ समझ नहीं आ रहा था। बस ऐसा कभी न हुआ , पर यह सच था अगर मोहबत इससे कहते है तो हाँ ,मैंने भी की है। . -
एक लगाव- एक ठहराव जिसे हम दोनों ने महसूस किया था। समाज की शर्म या उम्र का खुमार कुछ समझ नहीं आ रहा था। बस ऐसा कभी न हुआ , पर यह सच था अगर मोहबत इससे कहते है तो हाँ ,मैंने भी की है। . -
पढ़ने में भी बहुत होशियार नहीं थी पर वो बहुत था। ...
निहाल देखने में सुन्दर नहीं थे ,पर मन मोहक थे आज के रिश्ते नहीं जो पर में बिखर जाये। मेरे ज़माने में जीवन भर साथ का लगता था हाँ ,अपना हमसफ़र उसमे दिखता था .... उसके आने से ही क्लास में पढ़ाई में सब अच्छा लगता था और ,मुझे यकीन है उससे भी .......सब काम साथ साथ हो रहे थे
निहाल देखने में सुन्दर नहीं थे ,पर मन मोहक थे आज के रिश्ते नहीं जो पर में बिखर जाये। मेरे ज़माने में जीवन भर साथ का लगता था हाँ ,अपना हमसफ़र उसमे दिखता था .... उसके आने से ही क्लास में पढ़ाई में सब अच्छा लगता था और ,मुझे यकीन है उससे भी .......सब काम साथ साथ हो रहे थे
कभी कभी साथ में बैठते रिपोर्ट और प्रोजेक्ट के लिए
साथ ढूंढने की ज़रूरत नहीं थी बस साथ मिल रहा था ,हर काम में हर टेस्ट में हर वक़्त ,यह उसकी खूबी थी या मेरी चाहत। ...... जब याद करो बंदा हाज़िर वाल हिसाब था।
जहाँ लगता मैं अटक रही हु दूसरे ही पल,उसका उत्तर मुझे समझ आ रहा था
कुछ रिश्तो की भाषा नहीं होती यह मुझे समझ आ गया था
मूक रिश्ता था मेरा जिसने मुझे एक परिपक़्व ,समझदार और मज़ेदार इंसान बनाया
न कभी बातें हुई न कभी उम्मीद बस कुछ था जो पूरा कर रहा था
शायद, इसे ही जीवन कहते है जब लगता है पूरा हो गया तभी तूफ़ान ने दस्तक दी
और वो आँखे मेरे मुश्किल वक़्त में हमसफ़र बन गयी
क्योंकि इतने ज़हीन और यादगार लोगो की ज़रूरत भगवन को भी थी और वो चल गया हमेशा के लिए. ....
जहाँ लगता मैं अटक रही हु दूसरे ही पल,उसका उत्तर मुझे समझ आ रहा था
कुछ रिश्तो की भाषा नहीं होती यह मुझे समझ आ गया था
मूक रिश्ता था मेरा जिसने मुझे एक परिपक़्व ,समझदार और मज़ेदार इंसान बनाया
न कभी बातें हुई न कभी उम्मीद बस कुछ था जो पूरा कर रहा था
शायद, इसे ही जीवन कहते है जब लगता है पूरा हो गया तभी तूफ़ान ने दस्तक दी
और वो आँखे मेरे मुश्किल वक़्त में हमसफ़र बन गयी
क्योंकि इतने ज़हीन और यादगार लोगो की ज़रूरत भगवन को भी थी और वो चल गया हमेशा के लिए. ....