जब यु भी चलते थे तो रास्ते मिलते थे
आज जब रुके है तो चौराहा आ गया
कभी मन यहं जाता है कभी वह
अपनी बर्बादी का तमाशा भी कोई देखता है
हमने तो खुद को तमाशा बना दिया
बहुत चाहते थी सब को मिटा दिया
अब तो सब खाक करने का मन होत्ता है
सब सपने बुनने एक झूठ लगता
इतनी बेमानी होती है ज़िन्दगी
किसी पडावा पे आके यह लगता है
आगे के जीवन बोझिल और कठिन
पीछे की यादें खुबसूरत और फ़िल्मी लागती है
खोये खोये से विचार लगते है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें