बड़े अजीब दो शब्द है
कभी सामान ,तो कभी अनजान है
कुछ बनते , कुछ बनाये जाते है
कभी पक्के हो कर भी कच्चे रह जाते
कभी कच्चे भी पक जाते है
जबरदस्ती पक गए तो कडवे हो जाते
सबकी अपनी नीव सबकी अपनी मोल
एक बोल से बदल देते रोल
कठिन डगर है पाने खोने की
कभी चुप तो कभी बोलने की
कुछ जीवन भर चलते
कुछ उमरभर चलाये जाते
आधे जीवन के बाद शरू होते जीवन साथी बन जाते
शरू सी बने होते कन्यादान कर देते
जड़े कभ हिल नहीं पात
जो चाहए सो कर लो
सम्बन्ध की गहराई उसकी उम्र से जायदा होती है
समरण सच्चाई और ताज़गी हर रिश्ते को खूबसूरत बनाती है ...
कभी रिश्ते बचाते नहीं अगर मगर में
किसके रिश्ते को बिना अगर मगर के बचना मुमकिन नहीं होता
इसी अगर मगर में पनपते रिश्ते ................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें