एक भी समनाता नहीं पाई हर चीज़ ने अपनी अहमियत पाए
सूरज अपने तेज़ से सब फीका कर देता
चांदनी अपनी शीतलता से मन को सुकून देती
नदी की कलकल ,समंदर का तूफान
पक्षी के चहचाहट ,पेड़ का पतझड़
बादल की गर्जन ,बिजली की चमक
पशू की चपलता ,भवरो के गुंजन
क्यों मानव को चुना इसके विनाश के
लिए बिना शर्त प्रकृति ने सहारा दिया और
हम इसके संग खिलवाड़ करते जा रहे है ।
4 टिप्पणियां:
बेहतरीन संदेश समाहित है रचना में..साधुवाद.
बहुत सुन्दर भाव है
प्रकृति के प्रति चिंता जायज़ है.
शुभ भाव से प्रेरित रचना के लिये धन्यवाद ।
वाह जी बहुत खुब ।
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