ध्यान की अन्त्प्रेक्षण , मूल का भाव
कर्म की प्रतिष्ठा ,कार्य का योग
विचार का द्वार ,हार का परिष्कार
जीता का परिष्कृत , सत्य का चैतन्य
पदार्थ की मिथ्यता,जीवन का स्वरुप
स्वरुप का बंधन , बंधन से रिश्ते
क्योंकि रिश्ता धरम है ,धरम ही कर्म है
कर्म ज्ञान है ,ज्ञान शक्ति है ,शक्ति ही युक्ति है
इससे ही जीवन की मुक्ति है ।
1 टिप्पणी:
Waah !!!! Kya baat kahi aapne....
Bahut hi sundar is rachna ke liye aabhar..
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