बुधवार, 29 जुलाई 2009

खामोशी

खामोशी सताती है तन्हाई का एहसास कराती है
कभी कठिनाई के रास्ते और उल्जह्नो की जादोजाहेद से वाकिफ कराती है
कभी यादो के गलियारू में चुपके से संजोये खोबसूरत लम्हों को करीब ले आती है
उमर के बदने का एहसास करती है अपनी जिम्मेदारियों के कच्चे चिठे खोल जाती है
यहे तन्हाई और खामोशी की मिली भगत होत्ती है ,
दिल दे टूटे हुए अरमानो के रंज को कुरेद जाती है
हलकी से तीस उठती है समय के साथ उस पर मलहम लगाती जाती है
इस पडवा तक कितने अच्छे लोगो के नाम को धुधले बदलो में से निकल मुस्कान ला देती है
चोटी चोटी बातो के मतलब समझा जाती है
जवानी के दिनों के याद ताज़ा करा एक नया जोश भर जाती है
अल्दापन में की गई नादानियों की झलक दिखला जाती है
खामोशी और तन्हायी के साजिश है ,
ऊपर हाजिरी से पहले अपना लेखा जोखा बना जाती है
जीवन एक रील लगाने लगता है जिसके सतरंगी सफर पर ले जाती है
पुराने किले की तरह अपना बदन लगता है
कल तो यहे चुस्त था आज बीमारी का एहसास करा जाती है
संतुस्थी देती है अगर सब नीतिगत होता है
वरना दिल के टुकड़े बिखरने लगते है शर्म आती है अपने खवाबो को बुना ही क्यों था ?
वाही खवाब अपने बचो पे थोपने लगते है
फिर दूर अकेले रह जाते है हमेशा के लिए खामोशी में इन यादो के सहारे ॥

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