गुरुवार, 30 जुलाई 2009

घुटन

अम्मा को सब से उम्मीद बहुत जायद है , उनहोंने किया वो सब करे- यहे ज़रूरी तो नहीं !
वसे उन्हें करके क्या मिला ..............गरीबी, लोगो के ताने आज वो सब तो अफसर है और अम्मा और हम वही .......................अपने बच्चो के प्रति भी उनकी कोई जवाब देरी बनती है की नहीं ........................? समय बदल गया है महंगाई बहुत है सब कुछ स्तातुस का खेल है अगर पैसा नहीं तो
अपने बच्चे भाई कोई नहीं पूछता ....यहे पता होता तो क्या बात थी ...आज लोग अपने लिए जीते है ..और जो असा करता है वो सफल भी है ।
जो चुप चाप कर रहा है तो कुछ नहीं आज पोता अच्छा कामा रहा है तो सब की उस पर निगाहे गाड़ी है पर उसकी ग्रहस्ती है उसके बच्चे होंगे उसके अरमान कभी किसी ने नहीं सोचा : सोचा तो बस पैसा देता जा बिना बोले । ।
उसकी शादी में जानने कितने रूपये ले लिये और सामान देने की बरी आए ............, तो मेरे पास भी नहीं मिला , सब ने दबा के रख लिया । बाद में ,पता चला कुछ बुआ ले आए ,कुछ माँ ले आए, कुछ पिताजी ले आए, न लेनेदेने के कपड़े दंग से आए, न कुछ किसी को दिया न लिया ..................
....किसी ने इनसे पुछा भी नहीं तुम कुछ अपनी पसंद का ले लो .................. सब को अपनी चिंता थी अपना नेग सब ने निकलवा के रख लिया । ..दुल्हन को आए .......चार दिन हो गए किसे ने दूद पूछ न मेवा ,जो किलो भर मेवा दुल्हन अपने मायके से लाये नहीं पता कहाँ गई .....................सारी रस्मे बस खानापूर्ति के हिसाब से करी गई .........................दुल्हन भी सीधी ...से कुछ बोली नहीं किसी को .........................बल्कि आते ही उसकी साडी दिलवा दे किसी को देने की लिए बाकि पे ननद निगाही थी । हमेशा दूसरो का करो यही सीख देती रही ........................पति के लिए लाइए हुए शर्ट देवर को दे दी ......उसके अरमानो का कोई मोल नहीं , कोई देख भाल नहीं .
.हमेशा सीख देत्ती रहती है दूसरो का करो करते रहो ..पर मेरे लिए किसी ने क्या किया ? ...जच्चा थी तो किसी ने खाने को नहीं पुछा कुछ नहीं ..सब को लगा कहीं बेटा दूर न हो जाए .....देवर को ज़रा खासी जुकाम में पूरा घर तबियत ख़राब करता है मेरे पति को कोई पूछता नहीं ...........चुप चाप करते है न ...........................बस पैसे जमा करवा दो ...........फिर जाओ भाद में ......................पति भी पता नहीं किस मिटते के बने है ..................सब सह लेते है पर मन में कभी तो सोचते ही होंगे ।
दो साल हो गए शादी को कोई नेग नहीं रखा है एक जानने ने हाथ पर पर दिलवाया इतना है की क्या बोले ...इनके पैसो पर मुझ बीवी को छोड़ सब ने मज़े किए है ...घर वाले तो मेरी ज़रूरत बस काम के टाइम पे है मुह पर सब मीठा बोलते है साब दिखवा लगता है ..हमेशा डरते है कहीं इन्हे न बड़का दू मुझे मेरी कर्तव्यों के बार्रे में बताते है जसे मिएँ चिट्टी बच्ची हु सब पागल बनते है मेन्हंगे गिफ्स की उम्मीद रखते है ख़ुद एक ने भी दंग का नेग नहीं दिया .........इन्हे देखते ही प्यार जतेते है जाते ही रूखे हो जाते है असा रोंना रोत्ते है की बस .....यहे पिघल जाते है।
.अगर सब कुछ करके सही रहता तो क्या दिकत थी में एक शब्द नहीं बोलती ...मेरे बच्चे को एक चीज़ नहीं दी .....अपनी बेटी और बेटा के बहु को सोना देने के लिए पैसा था मेरे बच्चे के १०० रुपये के कपड़े नहीं ला पाए .......में कोई धर्मात्मा नहीं ....देवर से भी तो ले सकते है पर वो रोना जानते है ....अपना पैसा दबा के रखते है ...............शादी में अपना और अपनी बीवी का सब किया ............बाकि मुझे तो नेग की एक साडी तक नहीं दी किसी ने ..........ननद भी तो कमाती है ......क्या दिया मुझया इन्हे ................पूरी शादी इन्होने की बच्चा पीड़ा होंने में किया ,पर बड़ी होंने के बाद भी नेग नहीं दे पाए .............देवर इतना कमाते है पर ..............सब समझ जमा कर रखा है ...................इतनी बड़ी कोठी खरीद ली एसा तो है नहीं डाका डाला .........जोड़ा ही है पैसा .
इनको बोलती हु ...............दुनिया दिखने की है आज में क्या एक किराये के मकान में रह रही हु कोई उम्मीद नहीं कभी अपना मकान होगा ........में तो एक कमरे के मकान में भी रह लू अगर मेरा हो पर एसा जिम्मेदार्री की भोझ में डाला है की निकल ही नहीं प् रही में ..क्या मेरे पति के कारन नहीं निकल प् रही .....?.
अभी घर में चार लोगो का इलाज हमे ही करवना होत्ता है ...........सब बड़ी बीमारिया .....................दीदी के बच्चो को ब्रांडेड कपड़े भेजे जाते है साल में २ बार मेरे बच्चो को साधारण कपड़े भी मिल जाए तो बहुत है ...................अकडा इतनी हमारा बेटा इतना कमाता है ...........दुल्हन तुम्हे कामने की ज़रूरत नहीं .........................वसे तो सही है सारा दिन इनकी चाकरी करू एक गिलास पानी तक कोई नहीं लेता ....... फिर नौकरी दोहरी मार............पर इनको देख लगता है कोहलू के बैल की तरह ज़िन्दगी निकल दी ...........कल मनु बड़ा होगा तो क्या बोलगा....................अपने मेरे लिए किया ही क्या ?
हमरे ज़माने की बच्ची तो नहीं ..............जो जसा रखा रह लिया ...............इतना लाखो कमाते हुए भी दिन बा दिन बदती महगाई और ज़रूरत ने सब बराबर कर रखा है . इतना बड़ा सर्कल था इनका आज सब बंगले कोठी में रहती है इनको कोई पूछता नहीं अब दुःख समझती हु पर कुछ कर नहीं सकती ।
एक बार बोला था ..........शादी के बाद तुम इतना मत करो थोड़ा बचा के रख लो पर तब समझ नहीं आया मुझ पर ही चिला पड़े तुम और लड़कियों की तरह मुझे मेरे परिवार की तरफ़ से दूर करना चाह रहो हो । .....
आज सोचती हु... काश तब ऐसा ही कर देती ...इनकी बड़ी ताई की तरह उन्हें  पता था ...................अम्मा के लिए जान भी दे दो तो वो कमी ढूंढ़ ही  लेंगी .........वसे भी जहाँ पैसे की कमी होत्ती है वह यहे सब बाते कुछ ज़यादा ही होत्ती है .................पैसा सब दबा देता है ...............................इनकी ताई सही रही करती भी तो कब तक तीन क्वारी  ननद ,बेरोजगार देवर आर उनकी पति उनके बच्चे और अम्मा बाबूजी ........कितना ही बड़ा अफसर हो इतने लोगो को कभी संतुस्ठ नहीं कर सकता ...................आज मेरे देवर के लिए अम्मा का जी लगा रहता है ...........जबकि सब सुख है सुविधा है ..........................अम्मा को ले नहीं जा रहा .........न मम्मीजी को सब मेरे पास रहते है ,पर तारीफ मेरी देवरानी की करते है .................वो एक को भी नहीं पूछती अपना कमाती है .....हर त्योहार यही करते है ताकि खर्च बच जाए एक पैसा नहीं खर्चेते दोनों मियाबीवी .......
आज इनसे ज़यादा कामा रह है पर एक अन्ना नहीं की ..........माँ बाप खर्च कर दे ...हमारी तो बहुत दूर की बात है .............हम इतने नीचे नहीं घिर  सकते की उनसे मांगे ।
हमने देवर के शादी में मैंने इतने अच्छे से सारी तयारी की थी ...............सब में अपना पैसा लगया ......................देवर ने एक पैसा अपनी जेब से नहीं दिया ........................शादी के बाद हर महीने कहीं न कहीं घुमने जात्ते रही। दोनों २ साल में मकान खरीद लिया ..............किसी को नहीं बताया । इन्हे बहुत लगता था मुझसे पूछे बिना कुछ नहीं करता अब देखो......पर में इनसे कुछ नहीं बोलती .................मुझे हमेश एक बात लगती थी अगर बड़े बुजुग  का आशीर्वाद है तो सब अच्छा होता है .पर अब सोचती हु यह  कलयुग है ,ताई जी भइया.. इसके उदहारण है ...............अपने लिया सोचा .सब उन्हें पूछते है .हमरे मुह पर उनकी बुराई करते है इनकी बडाई पर .............सब उनके घर जाते है वो सब का करते भी है .........वसे भी जमाना है यही है अपनों से नहीं बनती दूसरो से  बनती है ...यहे भी  भूल जाते है  आज जहाँ है  यहं पर फीस इन्होने ही  दी थी .
आज सोचती हु ...अगर बड़े बुडे अपने लिए सोचे तो उनका आशीर्वाद नहीं लगता . इसलिए ही में आज अपने पति को एक संसय में देखती हु । इतने अरमान थे ........इतनी चाहते थी .।भगवन ने मौका भी दिया सब करने का पैसा भी दिया। पर लापरवाही से फिर वोही आ गए।अपने बच्चे से उम्मीद लगा रह है ।में तू निर्मोही हो गई ,इनको साफ़ बोल दिया ,तुम्हारा बेटा तुम से कोई अपनात्वा प्यार नहीं रख पायेगा , उसके हिसाब  से उसके लिए तुमने कुछ नहीं किया और जिनके लिया किया उसे उसका महत्व नहीं ,यह्नी तुम गीता का पाठ  भूल गए । तुम उसके लिए कर सकते थे पर नहीं किया । मेरे मन और आचरण पर कोई बोझ नहीं ।पर तुम्हरे सपने अधूरे रहना का रंज इतना है की आत्मा को शान्ति न मिलेगी , मेरे लिए तुम्हारी खुशी ही सब कुछ है... आज तुम खुश नहीं.......... यह  में जानती हु ।
आज यह  सब जिनकी वजह से हम यह है .......वो तुमारी ग़लत मोनेटरी अर्रंगेमेंट बताते है यह  तुम्हारी  कमी है की तुम मकान नहीं खरीद पाए . वर ने कितना अच्छा कोठी खरीदे इतनी काम पगार में ..........................असलियत क्या है .....................कौन जाने ...........................तुम्हारा बच्चा  तुम्हे ताने देता है बीवी कभी ख़ुद को कभी भाग्य को कोसती है या शायद तुम से कह नहीं प् रहे हो  तुम दोषी हो उसके ...................पर वो खुश है उसने वादा किया था वो तुम्हरे हर निर्णय में तुम्हारा साथ देगी .................पर उससे उसके माँ बाप के घर से ज़यादा खुश रखना ..............................क्या तुम एसा कर पाए ?
या जिमेदारी के जाल में फसा कर उसे तनहा छोड़ दिया ..............वसे तुम्हे याद है कब हम घुमने गए कब हमने जी भर के शौपिंग की कब भर खाना खाया कब मुझे मायके भेजा ............?
वसे मैंने  ही जाना  बंद कर दिया .....................माँ सब पूछती डरती थी कभी मुह  से कुछ निकल गया तो .............सोचेंगी में खुश नहीं.... वसे भी आज माँ बहुत आमिर है भाई अच्छे से है बहिन तो बहार है ही सब बड़े आमिरो में आते है .....................में वह से भी पीछे हो गई जहन से चली ...थी
कभी लगता है बहुत निर्मोही हु में कितनी आसानी से माँ बाप को छोड़ कर इन् लोगो को अपना लिया ............... यह  लोग अभी नहीं अपना पराये  ..............पति को सारा जीवन यहे लगा की में परिवार को सही से नहीं देख पाऊँगी ........................जबकि पूरा जीवन इन पे डाल दिया .................................... देखती  हु बेटा क्या सोचता है .......................
शायाद  यहे निरमोहा इसलिए क्योंकि किसे ने मेरे मन और मेरी  चाहत को नहीं समझा ......................मेरी लेखनी मेरी शौक मेरे जूनून को किसने समझ नहीं ..................सब अपना अपना नजरिया मुझ पर थोपते रह ...... ...........................वसे में लड़ भी नहीं पाती  ....................थोडी जिद्दी  हु पर अपने रास्ते खोज लेती हु  रहन के ............चिक चिक से दम घुटा है ........................भला  ही लोग मुझे तेज़ बोलते है पर अपने लोगो के लिए लड़ना मुझे पसंद है ...................पर मेरे दुर्भाग्य मेरे पति मेरा बच्चा  मेरे माँ बाप तीनो सबसे जरुरी लोग मुझे नहीं समझ पाए ..................... किसी को यहे नहीं बता पाई ...............................मुझ में कोई कमी होगी .................... यह  सब तो ग़लत नहीं हो सखते एक विशेष बुद्धि जीवी वर्ग है आखिर जो समझ के बांये हुए ढर्रे पर चलने के आदि  है

1 टिप्पणी:

श्यामल सुमन ने कहा…

अच्छे भाव की प्रस्तुति। लिखते रहें। आलेख में कुछ सम्पादन की आवश्यकता है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com