थोडा सा तक्लुफ़ है जीने में
हसरतो की फेहरिस्त लम्बी है
चंद कागज़ की कमी है
एक मुकाम के लिए बड़ी दौड़ धुप की है
आज फिर सब रुका सा लगता है
बहुत कुछ सोचा है पर कुछ दम नहीं
हर शान के लिए बहुत पिछड़े से लगते है
खुद को छोटा ही पाते है
बहुत सी कोशिश के साथ थोडा का मुकदर दे देते
आज किसे दोष दू ?
जब ऊपर वाले ने मुह मोड़ लिया है
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