सोमवार, 10 अगस्त 2020

जी लो

इस भीड़ में अपना अक्स  टटोलता  है
कहीं  खो गया मेरा साया
मेरी छोटी सी  ख्वाशियों  की फेरिस्त
पूरी नहीं हो पाई
जब कोई साया पूछता है तुम कहाँ
में अपनी परछायी  और आत्मा से जुदा हूँ
उस पल ख़ामोशी  पुकार रही  है
तुम खुद नहीं कोई और हो
एक चोला लपेट कर जी रहे हो
खुली सास में तकलीफ है
यहं सपन्दन की अभिव्यक्ति है
एक तड़प है पंख न पसारने की
बेचनी है ऊँचा उठने  की
जज़बात की कद्र की चाहत
दिल की  गहरायी में सब  जानते  है
जरुरी  नहीं मुँह से सब बयां करे
आँखों के जज्बात भी  पढ़  के  देखो
ज़िन्दगी को आसान बनाना  मुश्किल है
मुश्किल से जीवन निकलना आसान  होता है
रास्ते तो बनाने पड़ते है
कभी दूर  है कभी अचानक बंद हो जाते है
थोड़ा थोड़ा  कभी ज़यादा ज़यादा अच्छे
 इन छोटे छोटे से जीवन जी लेना
बिना  किसी उम्मीद के
एक बार  देखो जीवन  खुल के जी लो।