गुलाब की खुशबू में इतना खो गए भूल गए की कांटे भी है
खुशबू में इतना गुम थे की कांटे का एहसास ही नहीं था
जब हुआ तो खून सुख चूका था आंसू बहते बहते सुख गये थे
ज़रा सा झटका लगा तब कांटे का एहसास हुआ ..
में बहुत आगे जाना चाहतो थी पर अकेली ही थी
सोच था एशिया होगा खुशबू सा लेकिन खुशख था
में जी रही थी मरने के लिए मेरी आस जा चुकी थी
पावन गुलाब कभी भगवन को दिया है
कभी किताब में छुपा कर रखा अपने अनदेखे प्यार के लिए
पर अपने प्रेम का प्रतिक नहीं बना पाया
आज उसकी सुखी पट्टी मुझे चिदाती है
मेरे प्यार का मजाक बनती है
कभी आखिरी पाती में प्यार ढूँढना
गुलाब मेरे साथी था कभी टीचर को देने का
कभी राजीव गाँधी से मिलने पर देना
मेरे बाग का राजा मैंने मुस्कुराना सीखा था
कभी उसके खिलने पर मेरा मन नाच उठता था
आज उसके कांटे अपने से लगते है