मंगलवार, 6 नवंबर 2012

निशब्द

निशब्द सा   होता  जीवन
रिश्तों में आत्ती  खटास 
मुश्किल में पड़ते बंधन 
नासमझी की दीवार
तारतार होती मर्यादा
जाने कौन सी है वो सोच
प्यार के बदलते  मायने 
 अकलेपन सी आफत
दुनिया को दीखने के रिश्ते
कुछ हसी के पीछे बहुत से गम
किसी की निगाह में  काली  बदली
प्यार में बेरुखी है
नज़र में बेदर्दी  है
जाने किस दिशा में बन रहे या रिश्ते
पराये अपने है अपने पराये है
सिकुड़ते जीवन में लम्बी ख्वाइशे

जाने किसी दिशा के रिश्ते है
टूटने और दरकने का एज्सस है
कोई प्यार का साहारा  नहीं
बड़े बदनसीब थे
बेआबरू हो कर ज़िन्दगी चलते रहे है
आज लुटने पर गुनहगार बने  कटघरे में है