गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

प्रेम की पराकष्ठा



प्रेम की पराकष्ठा  पाने की लिए 
बहुत कुछ सोचना नहीं होता खुद बा खुद आ जाती है 
दिनों से कोई फर्क नहीं पड़ता , दिल  मिलने  की  बात  होती  है 
वरना एक दिन सदियों सा  लगता है ,  सदियाँ दिनों सी 
पल पल एक दुसरे में गुम होने की तड़प लिए रहना , गुम होंना दो अलग बात्तें  है 
बिना बोले कर देना , बिना समझे समझा देना इतना असं नहीं होता है 
एक तड़प चाहिए होती है मिलने  की 
बातों के मतलब नहीं गहरायी मापी  जाती है 
कभी कभी की लड़ायी में दरारे नहीं  पड़ती 
प्रेम खुशबु को महकने के लिए दीवारे नहीं खड़ी की जाती 
झरोके से  नयी और रोशनी  ताज़ा कर देती है महक को 
जीने की लिए शर्ते नहीं समर्पण चाहिए 
प्यार देने की बात होती है बातें  तो हर कोई लेता है 
इसका हिसाब नहीं रखा जता 
मेरा तेरा नहीं हमारा होता है 
हमेशा याद उतनी ही  रहती है 
विचारो  का मतभेद  प्रेम को कम  नहीं करता
कभी  तनाव आ जाता बस ...  
लेकिन वो सदा के नहीं कभी कभी तनाव भी रहता है
बस गांठ  नहीं आनी चाहिए
शांति के पल में सोचे और समझे तो बस
तख्ती पे लिखी बत्ती से होते है यह रिश्ता ....
ऊपर नीचे होते यह रिश्ते इसमें झूलने का मज़ा लेना चाहिए
कभी रुकने नहीं देना चाहिए .......
पर

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