बहुत से साल बीत जाते है एक दुसरे के साथ
कभी दो दिल मिल कर नदी बन जाते
कभी दोनों दिल के छोर सागर से भी दूर हो जाते
साथ यह जीवन इतना असं नहीं होता
सबका अपनी धरती और अपने असमा पे अधिकार होता
कभी अकेले रह कर भी साथ होते है कभी साथ होकर भी तनहा
बहुत नाजुक डोर है दिल से दिल की
ज़यादा ढील दे दो तो छुट जाती
कसा पकड़ते ही दम निकल जाता
रख देने पर उलझ जाती है
छोड़ देने पर ग़ुम जाते है
फिर से तनहा दो दिल भटक जाते है
1 टिप्पणी:
sundar abhivyakti , dil ki achhi vivechna ki
kuchh typing galti ko sudhar le rachna ki utkrishta kam ho jati hai . dhanyvad
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