बस ,चलते चलते कुछ ख्याल अपनी छाप छोड़ जाते है।
कभी कविता कभी कहानी बन जाते है ,
यह कला है ,मुझे आयी नहीं
पर विचारो ने मुझे लिखने पर मजबूर कर दिया।
इस गुस्ताखी के लिए माफ़ी
रविवार, 30 अगस्त 2009
जीवन चाहत
सुर्ख खाक होती ज़िन्दगी में फूल की चाहत नहीं बूँद के मोती में बदलने की आरजू नहीं सिर्फ़ एक चाहत है चेन की एक सास चाहिए रात की सुकून भरी नीद ताकि कल को नई नज़र से देख पाए सिर्फ़ सुकून के दो पल बहुत है लम्बी से जिंदगी के लिए ।
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