मंगलवार, 11 अगस्त 2009

बच्चे

आज दिवाली है पर लग नहीं रह है । इस बुदापे में हम दोनों अकेले है। कहाँ एक भरा पूरा परिवार होत्ता था । जितना नास्ता बनू उतना कम पड़ता था। आज डायबिटीज़ के करना कुछ नहीं खा सकते । बच्चे अपनी अपनी जगह है । शायाद ही हमे कोई याद करता होगा इससे आस में बेठे है हालाँकि सुबह ही चारो बच्चो का फ़ोन आ गया बेटी का भी आ गया । सब बुला रही है , पर बेटी के पास साल में २ बार जन सही नहीं लगता ।बेटे बहु को हमारा आना अच्छा नहीं लगता जबकि आज तो हाथ पेर चलते है पता नहीं जब नहीं चलेगे तब क्या होगा । में तू फिर भी बहु के साथ निभा लू पर इनका क्या करू बिना बोले रह नहीं पते में बस बहु बेटे ससुर में पिसते रहती हु । न बहु समझे न यहे बेटा इनको बोलू बोले तू लडाई हो ।
एक वो जमाना भी था , जब हम बहु थे , हमारी भी सास थी और कभी कोई बंदिश नहीं ,बस अपना काम करो चके के खाऊ और बदू का लिहाज़ करू । अच्छा था की परदा था , कोई मतलब ही नहीं होत्ता था । आज कल कोई लाज कोई शर्म नहीं बडो के सामने कोई भी बात बोल दे जाती है सब टीवी का असर है सब सीरियल में बस लडाई जलन यही सब सिखाते है । सब देख कर मन खातात हो जाता है ।
बड़े बेटे की बहु बातूनी है ,पर अगर कोई टोक दे या कुछ बोल दे एसा मुह सुजाति है की किस्सी के सामने भी न बोले सब को पता चल जाए की कुछ हुआ है । किसी से बात नहीं करती यहाँ तक की मेहमान के सामने भी मुहु फूला रहता है । चोट्टी बहु घुन्नी है उससे क्या अच्छा लगता है कुछ नहीं पता । जबकि वो यहं आती है तो सब में हाथ में ही देती हु मेरे परे ही सूज जाते है ,पर किस्सी बेटे को नहीं दीखते अपनी बहु का घमना शौपिंग और डिनर बस माँ बाप कासी हालत में नहीं पूछते बीपी दैबेतेस कुछ नहीं घर का ऊपर का वाला हिस्सा अब न मुझसे साफ़ होत्ता है न इनसे बच्चो के बहरोसे भी नहीं रह सकते एक दिन अगर कम की बो दिया तो बीवी मुझे पे बोलती है बहुत कम होत्ता है आपके घर जसे इनका बचपन तो हमेशा इनके साथ रहा है । काम का क्या है बाई को ५० रूपये दो वो कर देती है चार दिन हसी खुशी बोल लो यही बहुत है । न हमें इनका एक रुपया चाहिए न ज़रूरत है फिर भी इतने खिचे रहते है मेरे घर आने के लिए छुट्टी नहीं मायके जाने के लिए है ,पता नहीं मेरे बोलने में कसा है या इनकी समझ में ।
जमाना बदला है अब सास बहु से डरती है । सही है कलयुग है मेरे बच्चो केलिए मेरे सीने में जो दर्द है वो अब बहु के आने के बाद में दिखा नहीं सकती । जो तयोर पे में अपने पति को छोड़ बच्चो के हिसाब से मानती थी आज उस्सी त्योहार पर मुझे अकेले मानना पड़ता है हर मिठाई बनते समय हर जानने की याद आती है पर चार आसो ढुलक कर रह जाते है माँ की आतम कलपती है ..हे भगवन में कभी बद्दुआ न दे दू इससे बचना ॥
शायद मेरी बहु भूल गई उसके भी लड़का ही है वो क्या करेगी ॥? तब शायद मेरे दिल का दर्द समझ पाए आज एक चोट लगने पर जितने आँसू बहती है ..कल सोच कर देख बहु अगर इस बेटे ने तुझे नहीं पुछा तो ..... तेरे दिल पर क्या बीतेगी ...बस एक कसक में हु सब कच बहुएओ के हिसाब से करकेभी मुझे कोई सुख न मिला इससे तो अच्छा था अपने हिसाब से करने देती सब और में भी खुश रहती । जब जायेंगे तो कुछ दे कर ही जायेंगे पर फिर भी ... यहे कुछ कलयुग के नियम ही इसे है। स्कूल में ग्रंद्फठेर डे मानते है तब अपने बच्चो को क्या बताते है यहे तो पता नहीं बच्चे ने कभी अपने ग्रंद्फठेर से बात नहीं की । आजकल एक बच्चा होत्ता है दोनों माँ बाप उसे अच्छा बनने में यहे ब्भुल जाते है वो क्या है ..कभी खद तो फर्स्ट आए नहीं पर बच्चो को फर्स्ट लाना कहते है उसकी मासूमियत से खिलवाड़ करते है ..उसकी अपनी चाहत मर जाती है । माँ बाप अपनी नाकामी को अपने बच्चो की कामयाबी में बदलते देखना चाहते है । अपनी मस्ती अपनी शरारत उन्हें नहीं बताते । मेहेंगे मंहगे खिलोने से उसका कमरा भर देते है ...पतंग नहीं देते जो कभी वो बहुत उमग के साथ उड़ते थे, कपड़े दोना ka दोव्ना ko बा bante थे पूरा khandan एक hi थान से कपड़े पहनता tha यहे nahin बताते , चंचादी नहीं बजाने देते अब वो शर्म की बात होत्ती है ..माँ का बुना स्वेटर नहीं पेहेनते क्योंकि वो ब्रांडेड नहीं होत्ता माँ ब्रांडेड थोडी है माँ पुरानी है वो saari पहनती hai । घर में थोडी सामना बनया जाता hai त्योहार पर सब bazar से आता hai पहले तो hum ५० लोगो ka बनते the अब ३ -४ logo का भी nahin बनता मेहमान ke सामने सिर्फ़ रखना होता hai खाना नहीं पहले काजू badam कभी mil जाए to बस धन्य ho जाते थे sab बड़े छुपा ke रखते थे अब to मुह mein सोने की चम्मुच hotti है । कभी इनका बच्चा अगर दादी के पास रह गया तो यहे किस्से सुना कर वो उससे बिगड़ देगी उसका स्ताट्स कम हो जाएगा .....समझ नहीं आता हसू या रूऊ ...
..पर में उन माँ में से नहीं जो रोते रह में ही अपने पति के साथ आराम से रहती हम पिक्चर देखते है ,डिनर करते है और यहं अपना सर्कल बना लिया है जो अकेले कपल्स है आराम से मिलकर हर त्योहार मानते है । बच्चो के याद भी नहीं आतीपर जब उन्हें हमारी याद आएगी तब बहुत देर हो चुकी होगी ।

4 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

भावनाओं के आपने शब्दों में पिरो दिया है

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर ने कहा…

विषय चर्चा, अच्छी लगी.
सुन्दर!!!
आभार/ शुभमगल
जय हिन्द!!!!!
हे प्रभू यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर

Arshia Ali ने कहा…

Man ko bhigo diya aapne.
{ Treasurer-S, T }

Ritu ने कहा…

ashriya ji ,mmbai tiger ji ,anil kant ji app ka bahut bahut dhanyawad ......mein abhi apni lekhan galatiyoo ke liye shama chati hu inko sudhren ki koshish kar rehi hu