सोमवार, 5 सितंबर 2011

मौन

  जीवन  में  की  मौन  परिभाषा किसी गूंगे से पूछे तोह सही  मिल पायेगी / वसे इस दुनिया में कितने लोग है जो बोलते है फूल झड़ते है ...... कुछ बोलते है........... तो कान बंद करने का मन होत्ता है  .....कितनी ही बार बोलने से बात सुलझ जाती है  ..उतनी ही बार उलझ जाती है ...............पहलु हर बात के दो पहलु तीसरा नहीं होता बना दिया जाता है ....मौन  रह  कर  हम  अपनी  इज्ज़त  रख सकते है ..एक दुसरे को बातें समझा सकते है  बिना बोले बहुत से बात में बहस का कोई आधार  नहीं होता.... उसे हमे बिना बोले ही समझना होता है ....बोलने से     बाते और उलझ जाती है ...खास कर भारतीय घर में जहाँ बहुत कडवी और सच्ची बातें नहीं बोली जा सकती.. सही गलत नहीं... अपने मन की बात बोलने के लिए सही मौका ज़रूरी है..............
मौन हथियार है अपने में गुम होने का .........जब बातों का असर ख़तम हो जाये ...उससे पहले मौन सही है  ........
    ..जब बात ओछी शब्दावली की तरफ   जाये तब मौन बिलकुल  सही है .....यदि बातें बहस से बढकर .......लड़ाई और एकदूसरे को दुखी करना ..मौन को अपना दोस्त बना लेना चाहिए ......मौन के बहुत से फायदे है ....वही नुकसान भी जहाँ ज़रूरी हो वह मौन नहीं रह सकते कभी अपने लिए अभी अपन के अपने लिए बोलना पड़ता है.........बात  कहने का ढंग होता है वही ढंग ..बात की पुष्ठी करता है.............कभी आने वाले कल के लिए आवाज़ ज़रूरी है.....
मौन हथियार है ज और सभी हथियारों की तरह समझदारी से इस्तेमाल करना चाहिए ..

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