शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

ज़मी का टुकड़ा

एक ज़मी  के टुकड़े ने किया सब से पराया
माँ -बेटे को दीवार बनाया
भाई भाई का दुश्मन बनाया
अपने अड़े वक़्त के लिए ज़मी का टुकड़ा लिया ,
 आज सारे  रिश्तो के अड़े आ गया .
  सिर्फ ज़रूरत के रह गए रिश्ते
अपने गड़े पसीने की कमाई  से खरीदा टुकड़ा
आज अपने खून को  पसीना करने को तैयार  हो गया
तिनका तिनका करके जोड़ा
आज सब बराबर करने पे अमादा हो गया
अपने बचपन की धुप  छाव को भूल कर
आज जवानी का  रोब दिखाके बोला
कल उसका भी बुढ़ापा  है यह न जाना
किसके पास क्या टिका है यह किसने जाना
कल यह हमारा था आज तुम्हारा है परसों किसी और का
ज़रा मरने का इंतज़ार तो करते हम नहीं अपने साथ लिए जाते
बस अपने साथी की यादें  थी तुम्हारे बचपन के मीठी अठखेलियाँ थी
पास पड़ोस था वर्ना इट,पत्थर से प्यार होता तो क्या बात थी
अपना कीमती  समय तुम्हे देने के बजाये कुछ और कमा लेते या घूम लेते
 यह मकान और पैसा तो मरने के बाद भी मिल जाता
अभी न बोलते तो शायद मेरे जीवन के दो चार साल हँसी  ख़ुशी निभ  जाते
अपने जीवन की सार्थक होने पे खुश रहते
आज एक टीस के  साथ जायेंगे परवरिश में कहीं तो कमी रह गयी
भगवान !! यह कमी तुम्हारी परवरिश से हटा दे  .
एक टुकड़े के ही बात थी अपने जिगर के टुकड़े की इच्छा  से कुछ ज़्यादा नहीं है .

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

खुशियों के मायने

कुछ कोरी कल्पनो को पनपते देखा है
कुछ अजनबी इच्छाओ को पूरा होते देखा है
कभी रोते हुए हँस भी दिए है
कभी आसुओ  को बिन बात के लुढकाया है
कोरे पन्नो  पे रंग भी भरे है
 बारिश की बूँद को पकड़ने का नाटक किया है
सप्तरिशी माना है हर ७ तारो के समूह को
इन्द्रधनुष के रंगों को बिखरे दिया है
पेड़ पे चढ़ कर आम भी खाए है
गिल्ली और डंडे पे भी हाथ अजमा लिया है
आज बड़े मुश्किल लागती है यह डगर
सब होते हुए भी सुनी है सेहर
खालीपन आ गया जीवनरस खो गया है
मासूमियत छिप गयी है, हँसी रूठ गयी है
बेमतलब .फ़िज़ूल सी लागती है परछायी
क्या लेंगे किसीका अपना सब लुट बैठे  है
खुद से बहुत प्यार है और घर का ख्याल  है
इसलिए जी रहे है मर भी गए तो कौन हमे याद करेगा
यह सोच जी नहीं दुखते
अपने कुछ कर्तव्य है  वही पुरे करते जा रहे है
कदर का तो क्या? इच्छा का तो क्या ?मन के मेल का क्या ?
सब कुछ उड़ते मन के हसीन सपने थे आज उड़ गए
हम ठगे से अपनी अर्थी का इंतज़ार करते है
तभी जीवन अपनी तरफ बुला लेता है
जब सच्चाई  का सामना करते है तो खुशियों के मायने मिल जाते है
बहुत से चीजों  के दोषी हो जात्ते है कुछ सवाल करो तो कटघरे में आ जाते है
कौन सी खुशियाँ ढूंढते है ?सब है बस कुछ बात न मानाने पर जीवन से निराश हो जाते है
एसा भी कहीं होत्ता है नादान दिल का धोखा है
जरा नार हटा के देखो यह सब कितने अपने से लगते है.