शनिवार, 12 सितंबर 2009

झूठी आस

हर मोड़ पर तन्हां पाया है ख़ुद को
पिता के आदेश को मन लिया
माँ की फाटकर को सह लिया
एक दिन वो सफ़ेद घोडे पे सवार आयेगा
जो मुझे समझ पायेगा
इस चाह में जीवन गुजर रहे थे
आ गया वो दिन ,पर तब पाया
सब एक सपना था जो कभी सच नहीं होता
माँ बाप का एक बोझ काम होता है
अपनी हस्ती मिटा दी सिर्फ़ प्यार के दो बोल के लिए
आज हम गुम है इस गुलिस्तान में अपनी तन्हाई के साथ
फिर एक आस जनम लेने वाली है बच्चो के साथ
फिर दिल को बहला रहे है
उम्मीद बाँध रहे है जीवन के साथ
जबकि हम को भी ख़बर है
यहे हे सच नहीं
जीने की लिए एक आस तो चाहिए ही
फिर चाहे वो झूठी ही क्यों न हो ।

2 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति
---
Carbon Nanotube As Ideal Solar Cell

Mithilesh dubey ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति। सुन्दर रचना। बधाई